- परिवार का मुखिया : अभिषेक -सुषमा पत्नी स्व. नरेश चन्द्र
- पिता का नाम : राम प्रताप ( गोद सूरज भान)
- सम्बन्धित गाँव : कोथ कलां
- वर्तमान पता : टेलीफोन एक्सचेंज के पास-उचाना-जीन्द (हरियाणा), 09812809055
- परिवार के सदस्य:
क्रम | नाम | आयु | शिक्षा | मुखिया से सम्बन्ध | रोजगार | निवास का पता |
1 | सुषमा | 35 | बी.ए. | स्वंय | प्राईवेट नौकरी | क्रम. 4 |
2 | शान्ती देवी | 80 | - | सास | गृहणी | यथा |
3 | अन्नु | 16 | +2 | पुत्री | - | यथा |
4 | अभिषेक (कमल) | 9 | 5 | पुत्र | - | यथा |
- वंशावली : नरेश-( राम प्रताप)सूरज भान-देवी राम(देशराज)-सीता राम-शिवधन(गरधारी)- लायक राम-रुपामल- जूणामल- लालमण
- पुरुष वर्ग के विवाह सम्बन्ध:
क्रम | नाम | पत्नी | श्वसुर/ साला | गौत्र | निवासी | वर्तमान निवास |
1 | राम प्रताप | शान्ती देवी | रतन लाल | मित्तल | मोठ-हिसार | जगराओ- लुधियाना-पंजाब |
2 | नरेश चन्द | सुषमा | सीता राम | मित्तल | चौशाला-कैथल | नरवाना |
- महिला वर्ग : बुआ, बहन, बेटी
क्रम | नाम | मुखिया से सम्बन्ध | पति | गौत्र | निवासी | वर्तमान पता |
1 | सावित्री देवी | बहन | शीतल प्रशाद जैन | - | रोहतक | बाबरा मौहल्ला- रोहतक |
4 | राज बाला | बहन | जगमन्दर | तायल | लाखन माजरा- रोहतक | दिल्ली |
8-परिवार की ग्रुप फोटो : संलग्न नही है.
- पुरुष वर्ग की फोटो : संलग्न नही है.
- आपके परिवार मे घटित कोई विशेष घटना या सुचना जो आप बताना चाहे :
दिव्य घटना:- 1-एक बार की बात है जब मेरे पति नरेश चन्द्र जी जीवित थे इनके पाँव मे फ्रैक्चर हो गया था. डा. ने सवा महिने का पलास्टर कर दिया था. अचानक तीसरे चौथे दिन रात के समय इनके पांव मे बेहद पीडा हुई. इन्होने मुझे अपने पास ही बिठाए रखा और कहते रहे कि तू किसी भी तरह जो आगे की पाँव की उंगली है, सहलाती रह. दर्द बहुत ज्यादा था ,रात को ही हमने मेरे जेठ रमेश जी जो कि नरवाना मे रहते है, ज्यादा दर्द के लिए उन को फोन किया उन्होने जवाब दिया कि हम सुबह-सुबह नरेश को दिखाने गाडी कर के हिसार ले जांएगे, आप किसी भी तरह रात बिता ले. रात को बहुत देर बाद इनकी आँख लग गई. ये हमारे बाबा सूरज भान जी के गोद गए हुए है, वो कई बार इन मे (नरेश) आ जाते थे और असली बात बता जाते थे (पूच्छा के रूप मे). लगभग आधी रात को बाबा सूरज भान जी इन मे आए, उन्होने मुझे जगाया और कहा कि मेरे पांव मे जोर-जोर से मुक्के मार क्योंकि मेरा पाँव बिल्कुल ठीक हो गया है, ये कभी भी शराब आदि नही पीते थे मुझे हैरानी हुई कि रात को इतनी जबरदस्त दर्द थी सोते समय तक परेशान थे. जब मैने मुक्के नही मारे तो इन्होने बैड की दराज के और दीवार के जोर- जोर से अपना पलास्तर वाला पाँव मारा. अब इनका पाँव बिल्कुल ठीक था. मैने रात को ही अपनी सास को यह बात बताई और सुबह- सुबह् अपने जेठ रमेश जी को, सब को बहुत खुशी हुई कि रात को बाबा जी ने आ कर इनका पाँव ठीक कर दिया है जब पलास्टर कटवाने डा. के पास गए तो उन्होने कहा कि आप सब पागल हो गए हो, पर मै ऐसी गल्ती नही कर सकता. सिर्फ 3-4, दिन मे ही सवा महिने वाला पलास्टर नही काट सकता तो इन्होने घर पर ही पलास्टर काट लिया.
2 बडे दु:ख की बात है, न जाने यह सब कैसे हुआ? अब हमारे बीच मेरे पति श्री नरेश चन्द्र जी नही है. करीब एक साल पहले सन् 2009 मे इन्होने मुझे स्वपन मेअ कर कहा कि तू एसा करना कि हनुमान जी की सवामणी लगा देना.उस स्वपन मे मुझे पूरा होश था कि ये हमारे बीच नही है. मैने कहा आप आकर सवामणी लगा दे. मै पीहर मे रहती हू, मेरे पीहर वालों को कह कर यह सब कैसे करु? पैसे कहां से आएंगे? वैसे भी हमने आज से पहले कभी भी सवामणी हनुमान जी की नही लगाई. आप यहाँअकर यह सब कर दे मैअप को मना नही करुंगी. इन्होने कहा कि मै तो मजबूर हूँ बहुत बडा संकट आने वाला है वह टल जाएगा, जो पैसे फलाँ जगह अलग से रखे है वो घर मे मत बरतना. वो सवामणी मे लगा देना, तू जब घर मे यह बात बताएगी तो सब मान जाएंगे. जैसे ही मैने सुबह उठ कर घर मे बताया तो सब घर वाले इस बात के लिये खुशी- खुशी राजी हो गये. जिस दिन सवामणी लगानी थी उस दिन फिर सुबह-सुबह इन्होने स्वप्न मे आ कर कहा कि भागवान तैयारी कर ली मैने कहा कर ली जी. तैयारी तो कर ली पर घर मे लड्डू तो तौल मे कम है. पहले पूरे कर फिर सवामणी लगाना. हमने सुबह उठ कर सारे लड्डू तोले तो वे कम निकले, फिर उनको पूरा किया फिर हमने धोक लगाई. सभी ने खुशी से प्रशाद खाया. अगले दिन सुबह- सुबह आचानक मेरे पिता जी को पैरेलाईज (लकवा) हो गया हम उनको गाडी मे बडी मुश्किल से पी. जी.आई रोहतक ले गये, लेकिन रास्ते मे बडी जोर से खाँसी हुई, हमने सोचा न जाने अब क्या होगा, पर मेरे पिता जी रास्ते मे ही बिल्कुल ठीक हो गये. हमने जा कर डा. से इलाज के लिये कहा तो कहने लगे कि आप के पागल पन का हमारे पास इलाज नही है लकवा लगने पर खाँसी आने से कहीं लकवा ठीक हुआ है, यदि वास्तव मे एसा हुआ है तो अपने आप को खुशकिस्मत समझो , क्योंकि लकवे का कहीं कोई इलाज नही है.इन दिव्य घटनओ से लगता है कि हमारे पूर्वज आज बी हमारे साथ है.
- व्वसाय आदि का पता: