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इतिहास गाँव कोथ कलां जिला हिसार का

 

इतिहास गाँव कोथ कलां जिला हिसार का

भारत के इतिहास मे हरियाणा और पंजाब जो अतीत के  पुरातन काल मे ब्रह्मर्षि अर्थात राजर्षि सिन्धु द्वीप के नाम से प्रसिद्ध था| इस देश के अन्तर्गत कुरुक्षेत्र, मत्स्य, पांचाल और शूरसेनक ये चारो प्रान्त आ जाते थे, अत: यह भारत वर्ष के अन्तर्गत ही है|

यह ब्रह्मर्षि देश हरियाणा व पंजाब सारे संसार का चरित्रादि की शिक्षा का केन्द्र था , यहीं पर ऋषि और महात्माओं का निर्माण होता था यहां की माताऐं बडी विदुषी और बलवान होती थी, इसी कारण यहाँ नारी की पूजा का विधान था|

“ यत्र नारी पूज्यंते, रमन्ते तत्र देवता”

परमपिता परमात्मा की असीम कृपा और योग सिद्ध बाल ब्रह्मचारी महात्मा काला योगी कलाधारी उर्फ दादा काला पीर की दिव्य दया से वीर भूमी हरियाणा के अन्तर्गत सुप्रसिद्ध गाँव कोट जो कि बाद मे कोथ गांव के नाम से पुकारा जाने लगा.इसी गांव को दादा योगी कालापीर जी ने अपनी कर्म भूमि बनाकर पुज्यनीय बाबा महात्मा लुधाई नाथ जी के आश्रम का विस्तार कर न केवल भारत मे ही बल्कि निकट के खाडी के मुस्लिम देशो ईरान, इराक व अफगानिस्तान जैसे मुल्को मे भी योग विधा और यज्ञ-हवन प्रथा का प्रचार प्रसार किया था.

ईरान देश के खलीफा हारू रशीद पर किसी शक्तिशाली सुल्तान ने राज्य हडपने के लिये बडी भारी फौज के साथ हमाल करने की तैयारी कर ली, पत्ता चलने पर खलीफा ने पंजाब के सिन्धु राजाओं से सहायता मांगी, उसकी सहायता के लिये सिन्धु राजाओ ने बडी भारी सेना भेजी, किन्तु दुश्मन सुल्तान ने सिन्धू सेना के पहुंचने से पहले ही ईरान देश की फौजो पर हमला बोल दिया जिसमे खलिफा की फौज के काफ़ी जंयादा नौजवान व खलीफ़ा का सारा परिवार मारा गया| केवल अकेला बूढा खलीफा ही किसी तरह बच पाया|इससे क्रोधित हो कर सिन्धु सेनाओं ने सुल्तान की फौज का सफ़ाया कर दिया| खलीफा ने ईरान का राज्य सिन्धु सेनापति को सौंप दिया| यह समय लगभग 11वीं शताब्दि के उत्तरार्द्ध का माना जा सकता है| इसी सिन्धु सेना मे उप सेनापति दादा काला पीर जी के पूज्य पिता जी कोट जी सिन्धु बडे बलवान शूरवीर और युद्ध कौशल के बेजोड यौद्धा थे, इनके युद्ध रणनीति  से बडे- बडे शत्रु कांपते थे|

      युद्ध की समाप्ति के बाद कोट जी सिन्धु अपनी पलाटून काफिले के साथ वापस सिन्धू द्वीप पंजाब   (भारत) स्थित अपने मूल स्थान गाँव पट्टी सरहाली जिला अमृतसर पधारे तो ढोल नगाडो के साथ बडी गर्म जोशी के साथ इनका जोरदार स्वागत किया गय़ा. यह बात आज से  लगभग 900 साल पहले की है| कुछ समय तक यहां निवास कर सुन्दर, रमणीक व धन धान्य से भरपूर भूमि की तलाश मे अपने ज्येष्ट पुत्र काला ( जन्म का नाम) जो गुरुजनो के आश्रमों मे ब्रह्म विधा व योग विधा का अध्ययन कर रहा था उसको वहीं गुरुजनो के चरणो मे छोड कर अपने शेष चारों पुत्रो 1. गिरधारी उरफ गिरा, 2. बलवान उरफ बुल्ला 3. पतराम, 4.महराणा और अपनी पुत्री सुमित्रा, तथा पत्नी सहित अपने कुल पुरोहित कौशल ब्राह्मण, ज्यूणा कुम्हार और खोबडा चमार के साथ चलने के आग्रह को ना टाल सके और सभी को साथ लेकर सरस्वती नदी की धारा जो कोथ गांव के निकट के तट पर बडा सुन्दर रमणिक स्थान देख कर डेरा जमा लिया|

कुछ समय बाद बडा बेटा काला जो ब्रह्मज्ञान व योग विधा मे प्रवीण हो कर अपने माता- पिता व भाई बहनो की तलाश मे यहाँ आया तो गाँव कोथ कलां के बडे बुजुर्गो की श्रुति ब स्मृति के आधार पर कथानुसार इस स्थान को गुणिया वाली कहते थे, जो कि  वर्तमान गांव कोथ कलां से 600-700 गज पश्चिम की ओर है। महात्मा योगी जी ने इस मिट्टी को शोध कर बतलाया कि इस स्थान पर तुम्हारे परिवार का बधेवा ( बढोत्तरी) नही होवेगा।  ऐसी मान्यता है कि काला योगी जी ने अपना अंगोच्छा उडाया ( फेंका) जो आज के आबाद गांव कोथ कलां के स्थान पर जाकर पडा। और इस जगह पर गांव आबाद करने की सलाह दी |उन्ही दादा कालापीर की सलाह मान कर गांव कोथ कलां को वर्तमान स्थान पर आबाद किया गया|  वेद शास्त्रों के अनुसार सन्यास आश्रम मे प्रवेश करने ( सन्यासी बनने) के बाद अपने पितृग्रह मे न रहने का सिद्धांत है इस लिये अपने माता पिता व भाई बहनो से मिलकर अपने सन्यास धर्म का पालन करते हुए यहां पर पहले से मौजूद तपधारी बाबा लुधाई नाथ जी के आश्रम मे योगिक क्रियाओं मे व्यस्त रहते हुए गौवों की सेवा व जन कल्याण के लिये कार्य करते हुये दिव्य ज्ञान बांटते रहे| महात्मा बाबा लुधाई नाथ जी महान योगी जी की विद्वता की चढती कला को प्रणाम कर यह कह कर यहाँ से प्रस्थान कर गये थे कि परमयोगी काला जी अब यह आश्रम आपके नाम से पूजा जायेगा|

कोथ गाँव के निर्माता परदादा कोट जी के पांच पुत्र व एक पुत्री थी|

कोथ गांव मे श्योराण गोत्र के आबाद होने की एक एतिहासिक व रोचक विरता पूर्ण घटना इस प्रकार है: लगभग चार सौ साल पहले हमारे पूर्वज सोढ सिन्धु ने अपनी बहादूर बेटी अमरी देवी का विवाह मंढौली गांव के चौधरी अंचल श्योराण के सुपुत्र गालम के साथ किया | अमरी देवी जब बारात के साथ मंढौली पहुंची तो उसे वहां की रियासत के नवाब के महल का कौला पूजने के लिये कहा गया तो अमरी देवी ने नवाब का कौला पूजने से साफ इन्कार कर दिया | जब अमरी देवी पर परिवार के लोगो ने नवाब के क्रोध का भय दिखाया तो अमरी देवी ने दालम को अलग बुला कर कहा अगर पूजने जाना है तो आप मुझे एक पैनी सी छूरी लाकर दे दो ताकि मै इस दुष्ट मल्लेच्छ को चीर डालूं | दालम ने कहा कि अगर तू  ऐसा करेगी तो कल ही हम और हमारा पूरा परिवार मौत के घाट  उतार दिया जाएगा| अमरी देवी ने कहा मै मरना पसन्द करूंगी लेकिन मै वैसा करके जिल्लत की जिन्दगी जीना नहीं चाहुंगी | मै सिन्धु राज वंश मे जन्मी बहादुर बाप की बहादुर बेटी हूँ  उनकी इज्जत मिट्टी मे नहीं मिला सकती मै तो थोडी सी देर मे यहां से निकल जाऊंगी  आपकी मेरी शादी हुई है| मै आपको पति मान चुकि हूँ | परन्तु मै अब तक कवारी हूँ | मेरे पिता के घर सारी उमर  कवारी बैठी रहूँगी, दूसरी शादी नहीं कराऊँगी | बुजदिलि छोड यदि आप साथ चलें तो मेहरबानी नही तो आप मुझे एक लाठी लाकर दे दो क्योंकि जंगल का रास्ता है| इतनी बातों से दालम का दिल पसीज गया और अन्धेरी रात मे दोनो वहां से चल पडे और एक दो दिन बाद गांव कोथ कलां मे पहुँच गये | बेटी को पति के साथ इतना जल्दी घर आया देखा तो हमारे पूर्वज चौधरी सोढ सिन्धु ने इसका कारण पूछा तो बेटी ने वहाँ ससुराल की सारी कथा कहानी कह सुनाई | पिता ने बेटी को शाबासी दी और गले लगा लिया| गांव के अन्य लोगो को जब इस बात का पता चला तो सभी ने अमरी देवी की मुक्त कण्ठ से प्रशंसा की|

कुछ दिन बाद गांव के बुजुर्गों ने अमरी देवी को अपना बेटा मान कर एक तिहाई जमीन अमरी देवी व दालम को दे दी | इसी दिन से यहाँ श्योराण गोत्र की वंश बेल चली | खूब फल-फूल रही है| यह बडी खुशी की बात है|

(चौधरी धर्मवीर सिंह सिन्धु आर्य की पुस्तक दादा काला योगी जी का संक्षिप्त जीवन चरित्र  से साभार लिया गया)

कालन्तर मे सरस्वती नदी के जमीन दोज होने से कोथ गांव की भूमि शुष्क हो गई, कुछ खेत बालु के टिब्बों की चपेट मे आ गये और पैदावार घटती चली गई| पैदावारी वर्षा पर ही निर्भर हो गई| यही मुख्य कारण रहा जो समय – समय पर लोगों ने अपने मूल गांव कोथ कलां को छोडकर पंजाब. हरियाणा और उत्तर प्रदेश के तराई वाले इलाको मे अपना डेरा जमाया| जहाँ आज भी सिंन्धु या भूल वश गांव के नाम पर कोथ को ही अपना गोत्र मानते है| इस गांव की इन्ही परिस्थितियों मे हमारे बाबा लालमण जी ने अपनी दीन दु:खी की सेवा भाव के कारण आकाल कि विपत्ति के समय मे सहायता की जिस कारण गाँव समाज ने बाबा जी को यहीं बसने का निमन्त्रण दिया जिसे बाबा ने स्वीकार कर लिया | क्योकि यहाँ से ही बाबा के 14 पौत्रो की सन्ताने रोजगार व अन्य कारणो से देश विदेश के भिन्न- भिन्न स्थानो पर निकासित हुई इसीलिये हमारे वंश के मुखिया बाबा लालमण जी हुये और उन्ही के नामपर लालमण वंश प्रसिद्द हुआ जो जान कारी के अनुसार हरियाणा मे सबसे बडा  अग्रवाल गर्ग गोत्रिय एक ही परिवार का वंश है जिसकी आज लगभग 700 से ज्यादा परिवाइक इकाईंयाँ न केवल भारत के कोने कोने मे वरन् विश्व के भी अनेक देशो मे फैली हुई है और लालमण वंश  तथा कोथ कलाँ गावं का नाम रोशन कर रही है.


  1. काला- ज्ञान का भण्डार विधा का सागर था इसने विवाह नही करवाया| सारी उम्र बाल बर्ह्मचारी रहा| दादा काला पीर के नाम से विख्यात हुआ|
  2.  गिरधारी - ( उर्फ गिरा) गिरा पाना के जाट इसकी सन्तती है|
  3.  बलवान - (उर्फ बुल्ला) बुल्ला पाना के जाट इसकी सन्तती है|
  4. पतराम -  बिरका और पुहलिया जाट इसकी सन्तती है |
  5. महराणा – यह पांचो मे सबसे छोटा और अविवाहित था, इससे छोटी एक बहन थी, जिसका नाम सुमित्रा था, जब वह 16 वर्ष की हुई तो महराणा ने तीनों भाईयों से कहा कि बहन सुमित्रा स्याणी हो गई है इसकी शादी करनी चाहिये| तीनो भाईयो ने राय दी कि बहन का ब्याह 2 वर्ष बाद जब ये 18 वर्ष की हो जाएगी तब करेंगे, जब चारो एक मत नही हुए तो महराणा ने कहा चलो बडे  भाई काला योगी जी की राय उनके  आश्रम मे चल कर ली जाये, जब महान काला योगी जी से पूछा गया तो उन्होने भी 18 वर्ष की होने की बात की तो महराणा जी बडे नाराज हुए और आश्रम ( डेरे) से ही सीधे दक्षिण की तरफ निकल गये|
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