- प्रथम वाक्य
- इतिहास खानदान बाबा लालमण जी
- इतिहास गाँव कोथ कलां जिला हिसार का
- जय बाबा नत्थनमल जी सदा सहाय
- विशेष विवरण
- उल्लेखनीय श्रावक
- पपीते मे प्रकट भगवान गणेश जी
इतिहास खानदान बाबा लालमण जी
हमारे परिवार का इतिहास जैसा मेरे स्वर्गीय पिताजी लाला सुरजभान जैन कापडो वाले निवासी जींद शहर सुनाया करते थे के अनुसार यह बात इतिहास की 18 वीं शताब्दी मे सन् 1739 के काल की है जब अफगान लुटेरे नादिरशाह ने मुगलों की कमजोर सल्तनत का फ़ायदा उठाते हुए दिल्ली पर आक्रमण कर लूट मार मचा रखी थी, उसके लूटेरों के आतंक से आम जनता के धन परिवार की इज्जत- आबरू खतरे मे थी| पुरानी दिल्ली मे निवास करने वाले कुछ परिवारों ने अपनी इज्जत- आबरू आदि बचाने के लिये हरियाणा के भिन्न-भिन्न स्थानों पर रहने वाले अपने मित्र- रिश्तेदारों आदि के यहाँ पलायन करना आरम्भ किया | ऐसे ही दो परिवार दिल्ली के नया बाज़ार इलाके मे पास- पास रहते थे जिनमे से एक परिवार लाला सूरामल जी व बबूरामल जी नामक दो भाईयों का था तथा दूसरा परिवार मूसल पिण्डी खानदान वालों का था जिनकी एक बहन तत्कालीन जीन्द रियासत के गाँव बिठमडा मे रहती थी ऐसी विकट स्थिती मे अपनी बहन के कहने पर मूसल पिन्डी खानदान का एक परिवार तथा लाला सूरामल जी के सपूत्र लाला लालमण जी का परिवार दिल्ली से चल पडा | मूसल पिण्डी खानदान का परिवार अपनी बहन के गाँव बिठमडा मे रहने लगा जबकि लाला लालमण जी का परिवार नजदीक के ही गाँव बूढाखेड (वर्तमान मे उकलाना मण्डी, जिला हिसार से 2 किलोमीटर दूर) मे आकर साधारण दूकान करके अपना गुज़र बसर करने लगा| लाला लालमण सहाय जी ने अपने मिलनसार व्यवहार, जरुरतमंदो की समय पर सहायता करने तथा मांगने पर नेक सलाह देने की परवृति के कारण आस-पास के क्षेत्र मे अच्छी ख्याती अर्जित कर ली| जिस कारण उसी गाँव मे पहले से निवास करने वाले अन्य वणिक परिवार जो निश्चित ही उनसे आर्थिक रुप से ज्यादा धनी थे के मन मे दुर्भाव पैदा हो गया किन्तू कोई लालमण जी कि ख्याती देख कर आपस मे इस बात का इज़हार नही कर पाता था|
दुर्भाग्य से उन्ही दिनो क्षेत्र मे भयंकर दुर्भिक्ष पडा, जिस कारण गरीब जनता को खाने के लाले पडने लगे| इसी दुर्भिक्ष से पीडित एक ओड परिवार (जोहड, तालाब, कूंऐ आदि खोदने वाले) अपने परिवार का पेट भरने की चाह मे भटकता हुआ बूढाखेडा गांव आकर गांव मे सबसे बडी हवेली देखकर एक वणिक के यहाँ सहायता के लिए पहूँचा| वह वणिक यधपि धनी था किंतु कंजूस था तथा लाला लालमण सहाय से ईर्ष्या- भाव भी रखता थ उसने लाला जी की परीक्षा लेने एंव नीचा दिखाने के इरादे से ओड परिवार के मुखिया से कहा कि हमारे गाँव मे वो आपकी सहायता लाला लालमण सहाय के अतिरिक्त और कोई नही कर सकता तथा लाला जी के घर का रास्ता भी बतला दिया|
जब ओड परिवार का मुखिया लाला जी के दरवाजे आया तो एक समझदार इंसान होने के नाते उसे यह समझने मे जरा भी देर नही लगी कि पहले वाले वणिक ने ईर्ष्या भाव से ऐसा किया है| फिर भी उसने लाला जी के सामने अपनी विनय रखी | जिसे सुनकर लाला जी ने अपनी आर्थिक स्थिति बताते हुए उन्हे अन्य ज्यादा धनी व्यक्तियों से सहायता लेने की सलाह दी | इसपर जब ओड परिवार के मुखिया ने सारी बात बताई और अनुरोध किया कि आप हमारे परिवार के भोज़न मात्र का प्रबन्ध कर दे हमे अन्य कोई मजदूरी नही चाहिए और हम आपके नाम से ही एक जोह्ड/तालाब खोदना चाहते है | तब लाल जी ने कहा कि ठीक है| “मेरे पास दो कोठे/ कमरे चने के भरे हुये है “ उन दिनो हमारा क्षेत्र बैरानी होने के कारण चना मुख्य बैरानी फ़सल थी| उन्होने उन कोठों की चाबी ओड परिवार के मुखिया को दे दी तथा कहा कि जब तक यह आनाज है आपके परिवार को भूखा नही मरने दूंगा और आप लोग निश्चिंत हो कर अन्य मजदूरी आदि कर के अपना भविष्य सुधार ले| इस पर निष्ठावान ओड परिवार ने लाला जी का कोटि-कोटि धन्यवाद करते हुये उन्हे ज़ोहड खोदने हेतु अपने आप स्वंय स्थान निर्धारित कर प्रथम कस्सी चलाकर शुभारंभ करने का अनुरोध किया यद्यपि लाला जी ने बार- बार इस हेतु मना किया किन्तु मुखिया की ज्यादा अनुनय विनुय सुनकर उन्होने गाँव के साथ के वन मे जा कर ऐसे ही एक जग़ह कस्सी चला दी और अपने गाँव लौट आये |
ओड परिवार ने वही वन मे डेरा डाल कर लालाजी द्वारा चलाई क़स्सी के स्थान से ज़ोहड खोदना आरंभ कर दिया| प्रभु की कृपा देखिये कि उस स्थान पर कुछ ही दिनों की खुदाई के बाद गहरा दबा हुआ एक बहुत भारी सोने चांदी की अशर्फियों से भरे घडों का खज़ाना निकल आया | यद्यपि ओड परिवार वहां अकेला था किंतू यह भले जमाने की बात है तथा इमानदारी काफी हद तक बाकी थी अत: ओड मुखिया तुरंत गाँव बूढाखेडा आकर लाला जी को जबरदस्ती अपने साथ ले आया और पूरा खज़ाना दिखाकर उन्हे सौंप दिया साथ ही क्योंकि ओड परिवार सारी वास्तविकता जानता था अत: मुखिया ने लाला जी से कहा कि धन सम्पत्ति जान का दुश्मन बान देती है और आपके नेक व्यवहार से वैसे ही आस-पास के अन्य वणिक ईर्ष्या भाव रखते है और आप यहां अकेले भी है अत: आप जहाँ कहे वहां मै स्वयं अपनी जान की बाजी लगाकर सुरक्षित छोडकर आऊंगा क्योकि आपने हमारे परिवार को भुखा मरने से बचाया है अत: आपके इस एहसान का बदला मै आपको धन व परिवार सहित सकुशल आपके इच्छित व सुरक्षित स्थान पर पहूंचा कर चुकाना चाहूंगा और हाँ अब क्योंकि आपके पास काफी धन भी आ गया है अत: मै चाहूंगा कि अब आप हमे ज़ोहड खोदने की उचित मजदूरी दे| लाला जी ने उनकी बात से सहमति जताई तथा कहा कि मेरा सारा परिवार भाई बंधु आदि दिल्ली मे रहते है अत: मै वहीं उनके बीच जाना चाहूंगा और इस ज़ोहड को अपने पिता लाला सुरामल जी की स्मृति मे उनके नाम से याद रखूंगा और कालातंर मे अब उसी स्थान पर एक गाँव सुरेवाला के नाम से आबाद हो गया है जो चण्डीगढ-हिसार राष्ट्रीय राजमार्ग के दाई और उकलाना मंडी से मात्र 5 कि. मी. दूर स्थित है|
लाला जी अपने परिवार के साथ ओड परिवार के संरक्षण मे पूरे माल असबाब ( जो खज़ाना मिला था वह लगभग 40 गधों के ऊपर लादा गया था) के साथ दिल्ली की ओर प्रस्थान किया| दुर्भिक्ष के दिन तो थे ही रास्ते मे पडने वाले गाँव कोथकलाँ मे रियासत के कारिंदो व अंग्रेजो ने लगातार पिछले तीन वर्षो का लगान न देने के कारण कुर्की का आदेश देकर पुरे गाँव को पिछले तीन दिनो से वसूली हेतू घेर रखा था जिससे पूरे गाँव मे मुर्दनी छायी थी तथा सब इस आफ़त से कैसे बचे सोच रहे थे की एक व्यक्ति ने आकर गाँव के मुखिया को बताया कि एक वणिक काफी माल असबाब गधों पर लाद कर परिवार सहित कहीं जा रहा है और यदि उससे अनुनय विनय कि जाए तो सम्भवत: गाँव की विपदा टल जाए | उसकी बात सुनकर गाँव के मुखिया व पंचायत के अन्य लोग तुरन्त वहाँ पर आए जहाँ से लाला लालमण जी गुज़र रहे थे उन्होने जा कर लाला जी के चरणों मे अपनी पगडी रख दी और गाँव की लाज बचाने की अनुनय विनय की| लालजी तो स्वभाव से ही दीन- दु:खियों की सहायता करने वाले थे और यह तो एक गाँव क्षेत्र पर प्राकृतिक विपदा मे सहायता करने का प्रश्न था और उपर से प्रभु ने उन्हे अनचाहा खज़ाना दिया था | अत: उन्होने उनसे सारा खर्च पूछा | हिसाब लगाने के बाद उन्होने कहा कि वर्तमान का सारे गाँव का जजिया लगान भरा जा सकता है जो मै भर दूंगा तब गाँव के लोगो की जान मे जान आई| उन्होने लाला जी की जय करते हुए उनकी सारी परिस्थितियां जान कर उन्हे अपने ही गाँव (कोथकलाँ) मे बसने का अनुरोध किया व मनचाही जमीन उनके नाम करने की इच्छा प्रकट की तब लाला जी ने कहा कि क्योंकि गाँव काफी बडा है अत: पूरे गाँव का लगान जजिया लगातार नही भर पाएगे हां एक पाना ( मोहल्ले) का भार उठा सकता हूँ | तब गाँव ने सबसे बडा पाना ( गिराह पाना ) उनके नाम कर उन्हे वहाँ बसने की जगह दी व 1193 बीघा ज़मीन उनके नाम कर दी | लाला जी ने गाँव का पिछला सारा जजिया/ लगान भर दिया तथा भविष्य मे गिराह पाने का जजिया/ लगान भरने की जिम्मेदारी ली | इस प्रकार हमारा खानदान लाला लालमण खानदान कोथकलाँ के नाम से प्रसिद्ध हुआ |